आज आप सभी को एक प्रेरणा दायक कहानी से रूबरू करवा रहे हैं। कहानी - "वो बुजुर्ग दंपती"

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कहानी: ☘️ वो बुजुर्ग दंपत्ति☘️

    
सुनो ना,
ऐसा कहते हुवे वह अपनी सीट से उठता हैं, तभी उसकी नजर अपने सीट के सामने बैठे हुये एक बुजुर्ग दंपत्ति पर पड़ती हैं।उनका प्यार और आपस में एक दूसरे की देखभाल वह देखकर हत्प्रब्ध होता हैं।वह बुजुर्ग दंपत्ति पिछले स्टेशन से ही उसके सीट के सामने वाले बर्थ पर रिजर्वेशन था उस सीट पर बैठे थे,वह अपनी सीट से उठकर जाने ही वाला था ।
अब वह उनको देख रहा था,वह एक दूसरे को बड़े प्यार से बैठा रहे थे ,उन्होंने अपना सारा सामान रखा फिर अगल बगल बैठ गए।अब वह उनकी बातों को सुनने लगता है।वह दंपत्ति बड़े सुकून के साथ बाते कर रहे थे।शायद वह अपने परिवार से दूर कंही जा रहे थे।उनकी आपस में बाते काफी देर तक चलती रही ,और वह काफी देर तक बातो को सुनता रहा।तभी बुजुर्ग दंपत्ति में से उस बूढ़े व्यक्ति की नजर उसके सामने की सीट पर पड़ती हैं, तभी वो बुजुर्ग चौक पड़ता है,और उस व्यक्ति से उसका प्रेम पूर्वक नाम पूछता हैं।
अमर यह नाम बताते हुए बूढ़े व्यक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करता हैं।अब अमर और उस दंपत्ति की आपस में बाते होने लगती हैं, वह बुजुर्ग महिला कुछ खाने के लिए पूछती हैं, अमर प्रेम से क्षमा मांग कर मना कर देता हैं।
खाना खाने के बाद फिर बाते पुनः शुरू होती हैं, महिला दंपत्ति पुराने दिनों की याद ताजा करने लगती है ,जब सभी एक दूसरे से प्रेम करते थे।आपस में सम्मान करते थे लेकिन आज के इस दौर में अपने खुद के बेटे जिन्हें पाल पोस कर बड़ा करो वह भी अपने माँ बाप के कर्तव्यों को भूल जाता हैं, इतना बताते हुए उनका गला रूदासा हो गया ,बुड्ढा व्यक्ति अपनी पत्नी को ढांढस बंधाता हैं।तभी अमर उनसें पूछने की हिम्मत नही कर पता हैं, कि आखिर क्या हुआ? लेकिन हिम्मत करते हुये वह उनसे पूछ ही लेता हैं कि माता जी क्या हुआ?वह महिला कुछ नही कहती,कुछ देर तक तो सान्त बैठी रही,इधर अमर के मन में खलबली सी उठ गई ,सिहरन सी उठ गई की कंही मैंने कुछ गलत तो नही पूछ लिया,लेकिन अचानक से वो बुजुर्ग महिला बोल उठती हैं,कि मै अपनी कहानी क्या कहूँ?
इधर अभी भी वो बुजुर्ग व्यक्ति जो केवल बैठा था ।
बोल पड़ता हैं, मेरा नाम सांतुनु कुमार और ये मेरी धर्म पत्नी मीरा सांतुनु हैं।
मै एक सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी हूं, और मेरी धर्मपत्नी भी एक सेवा निवृत्त कर्मचारी हैं।हम पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक शहर से है।
अमर अब और सोच में की आखिर इतने खुस से दिखने वाले ये दंपत्ति को आखिर क्या हुआ जो इतना सारा दुःख मन में लिए बैठे है, अभी तक तो कितने खुश थे ,कंही मैने तो इन्हें दुखी कर दिया ,ये सब सवाल अमर के मन में कुछोट रहे थे,लेकिन वह किसी से कह नही रहा था ,बस मन ही मन सोच रहा था इन सब के बारे में।
लेकिन वह महिला ने अमर के मन की बातों को भाप लिया और वो बोली बेटा सुनो हम बताते है।
हमारा एक ही बेटा है, हमने उसे बड़े नाज प्यार से परवरिश की है।
उसको पढाया, लिखाया ,उसकी शादी की लेकिन शादी के कुछ दिन बाद ही उसका हमारे तरफ दूसरा रवैया हो गया ।
हमें छोटी छोटी बातों पर ताना मारने लगा ,हमारी ख्वाईशो की कोई परवाह नही रही उसे ,हमें इसका कोई मलाल नही है।
यह कहते हैं उस महिला के आँखो से आँशु गिर गए ,जो अभी तक इतनी खुश सी नजर आ रही थी।
सांतुनु कुमार ने मीरा को संभाला।
वो दोनों बिना बताये घर को छोड़कर चले आये थे।उस घर को छोड़ कर जिन्होंने इतने प्यार से उसे बनाया बसाया था ।क्या इसी दिन के लिए ,और आखिर किसके लिए छोड़ कर आये थे ,उस पुत्र के लिए जिसको अपने खून से सीच कर बड़ा किया था।ये सवाल अब अमर के दिमाग में घूम रहे थे।उन बुजुर्ग दंपत्ति को देखकर अब वो यही सोच रहा था कि उम्र के जिस पड़ाव में हो केवल एक हमसफ़र पत्नी ही साथ दे कर आपको खुश राखती हैं।
कोई सिकवा नही कोई शिकायत नही।केवल और केवल आपको प्यार लुटाने के लिए होती है।
अगर एक सच्चा हमसफ़र,एक सच्चा साथी जीवन में है, तो ये जीवान आपका सफल हो जाता है।ये सब बातें अमर सोच ही रहा था की उन बुजुर्ग दंपत्ति का स्टेशन आ जाता है।वह उन बुजुर्ग दंपत्ति का आशीर्वाद लेता है।और उनका सारा समान स्टेशन में उतरवाता है फिर पुनः इस सोच में पड जाता है,कि क्या कोई अपने बच्चो को इसलिए पढाता है, अच्छी परवरिश करता है, की कल के दिन वो सब भूल कर अपने माँ बाप को परेशान करे।
अमर अपने मन में ये प्रण लेते हुए कि अपने माँ बाप को कभी परेशान नही करेगा और उनके साथ ऐसा बर्ताव नही करेगा क्यू कि इस तरह हँसता हुआ व्यक्ति भी रोता है, वो बुजुर्ग दंपत्ति अमर को एक सीख दे कर चले जाते है।अमर सोचता हुआ गहरी नींद में सो जाता हैं।।

लेखक
मो.आकिब जावेद (बिसँडा)
जिला बाँदा उत्तर प्रदेश
स्वरचित/मौलिक

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2 टिप्पणियाँ

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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  2. प्रेरणादायी मर्मस्पर्शी कथा।

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